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केदारकांठा के चाँद के किस्से कहानियों का सफ़र जारी है - केदारकांठा के ट्रेक पर

Writer: AAGAAS FEDERATIONAAGAAS FEDERATION

( यह लेख केदारकांठा के ट्रेक पर गए एक  ट्रेकर मंजू  राणा  और लेखक जे पी मैठाणी के ट्रैकिंग अनुभव पर एक लिखा एक ट्रेवलाग है) 


सभी चित्र - Manju Rana


देहरादून से  सुदूर उत्तरकाशी के गोविन्द पशुविहार के आँगन में स्थित है केदारकांठा ट्रेक. देहरादून से मसूरी - कैम्पटी फाल , यमुना पुल , नैनबाग, पुरोला,  मोरी, नैटवाड से आगे शानदार सेब के बगीचों के बीच से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद हम उत्तरकाशी के अंतिम गाँव सांकरी पहुंचा जाता है. सांकरी गाँव से ही केदारकांठा का ट्रेक शुरू होता है, साथ ही गोविन्द पशु विहार का बफर जोन भी शुरू हो जाता है .

दिन भर की थकान भरी यात्रा के बाद अगर आप हिमालय के एक गाँव  सांकरी के आस पास शाम की सैर करने को निकलें और संध्या के अँधेरे के साथ आसमान को देखें तो काले आसमान पर चमकते तारे और उन सबके बीच सुदूर बेहद  चमकीला - शाम का सबसे अधिक चमकता शुक्र देखें तो आप सिर्फ मंत्रमुग्ध ही रह सकते हैं ! यहीं केदार कांठा ट्रेक के बेस कैम्प सांकरी गाँव से हमको चमकते चाँद के बीच शानदार वीनस दिखाई देता हैं. आपको लगता है आप किसी दूसरी दुनियां में पहुँच गए हो.  शुक्र तारे को निहारते हुए अब पहाड के इस गाँव की सुकून भरी रात- सपनों के पार हिमालय के केदारकांठा की ओर.


सिदरी नाम के इस स्थान की कैम्पिंग साईट से अगली सुबह केदार कांठा ट्रेक की चढ़ाई शुरू होती है इस ट्रेक के दोनों ओर सेब के अनेक बगीचे हैं  इस सेब के पेड़ों पर पट्टियां बची हुई थी वो पीली और लाल पड चुकी थी -अब ये पेड़ सुप्तावस्था की ओर हैं, जाडा आने को हो आस पास के गाँव की महिलायें पीठ पर सूखी लकड़ियां लेकर आ रही है , पहाड़ में आज भी महिलाओं को उनके कठिन परिश्रम की वजह से रीढ़ की हड्डी माना जाता है इस रास्ते पर गले में घंटिया बजाते हुए - घोड़े , खच्चर और भेड बकरियों के झुण्ड आपका स्वागत करते दिखाते हैं फिर ढाल पर नीचे उतरते हुए कहीं गायब हो जाते हैं, और हम केदार कांठा की तरफ चढ़ रहे हैं सांस भारी हो रही है , हमारे टीम लीडर रजत- मुझे ,नेहा और अजय को प्रेरित कर रहे हैं ! अब हमको रास्ते में बर्फ दिखने लगी है साथ ही इस ट्रेक के दोनों ओर स्प्रूस, बांज, सिल्वर फर, बांज , बुरांश के साथ साथ कहीं कहीं देवदार के पेड़ भी दिखते हैं इन पेड़ों पर खूब सारे लाइकेन और हरी मोस घास के गुच्छे लटक रहे थे यही नहीं कई टहनियों पर बीटल के खोल भी चिपके हुए थे  ,इस बढ़िया चढ़ाई वाले ट्रेक से आखिर हम हरगांव के कैम्प पर पहुंचते हैं यहाँ पर ट्रिप माइ सोल की कैम्प साईट भी है. इस कैम्प के आस पास शानदार लैंड स्केप है, देवदार  और कैल के सुन्दर फल यानी कोन आस पास बिखरे हुए थे ! ट्रेक को आयोजित करने वाली एजेंसी आपको अपना पोलीथींन कचरा आदि रखने के लिए देते हैं, ये एक शानदार प्रयास है !


यहाँ के कैम्प के बर्फीले बुग्याल के एक कोने में साथी ट्रेकर्स इतने ऊँचे हिमालय में क्रिकेट खेल रहे हैं यहाँ हमने तेज धूप के साथ क्रिकेट का आनंद लिया और  फिर हम लोग आगे बेस कैम्प की ओर बढ़ जाते हैं, बर्फ के इस सीजन के बा वजूद भारत के विभिन्न प्रान्तों के ट्रेकर्स केदारकांठा  ट्रैकिंग के लिए आ रहे हैं. इस ट्रैकिंग अभियान के दौरान हमने देखा जंगलों में आग लगी हुई है चारों तरफ धुंवा ही धुंवा फैला हुआ है इन दिनों ये पहाड़ के जंगलों और पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक स्थिति है ! सूरज एक सिन्दूरी गोला दिखाई दे रहा है. शाम के धुंधलके के साथ ठंडी ठंडी बर्फीली हवायें  चलने लगी हैं. इस बेस कैम्प जिसका कोई नामकरण नहीं हुआ है में भारत के विभिन्न प्रान्तों के ट्रेकर्स आये हुए हैं गाना - डांस मस्ती  और अन्ताक्षरी के बाद हम अपने अपने टेंटों के स्लीपिंग बैग्स में दुबक जाते हैं ! अगले दिन के एकदम सुबह के ( 3.30 सुबह )  धुंधलके में टोर्च  और चन्द्रमा की रोशनी के साथ अब हम आगे बढ़ रहे हैं अब हमारा लक्ष्य केदारकांठा टॉप है  और अभी 4 किलोमीटर का ट्रेक बाकी है, इस बेस कैम्प से आगे बढ़ते हुए सांस फूलने लगी है, लेकिन चन्द्रमा की शानदार चांदनी के अजीब से तिलस्म में मोहित होकर हम आगे बढ़ते जा रहे हैं- बर्फ चमकीली सी दिख रही है ऐसा नहीं लगता कि, ये बिलकुल अलस्सुबह  है,  बिलकुल गीतों और किस्से कहानियों की जुन्याली रात ( जून - गढ़वाली में चाँद को और जुन्याली रात चांदनी रात) की तरह. इतनी सुबह आप आस पास के जंगलों में लगी आग की वजह से ये भी देख सकते हैं कि, बर्फ की चादर के ऊपर काली राख बिखरी हुई है और ऐसी काली राख की वजह से जो ब्लैक आइस बन जाती है वो फिसलन भरी होती है इसलिए ब्लैक आइस पर नहीं चलना चाहिए !अरे हाँ - चाँद और नीले आसमान की बातों के बीच यह बताना जरूरी है, केदारकांठा ट्रेक की इस मन्त्र मुग्ध कर देने वाली यात्रा के साथ पूरब से निकला चाँद अब पश्चिम की ओर अस्त होने को है यह दिसंबर की बेहद ठण्ड भरी रात है लेकिन पहाड़ की चोटी के पास चाँद के इस रूप को देखकर ठण्ड महसूस नहीं हो रही है ! डूबते चाँद के साथ साथ हम केदारकांठा के समिट पॉइंट की तरफ बढ़ रहे हैं थकान भी बढ़ने लगती है, लेकिन हम देखते हैं हमारी पूर्वी दिशा में लालिमा के साथ सूर्योदय का आगाज हो चूका है -पश्चिम में चाँद - अस्त हो रहा है , हमारे ट्रेक की लीडर अमृता ने हमको मोटिवेट करते हुए कहा अगर तुमने मन में सोचा लिया है कि, तुमको केदारकांठा से सूर्योदय देखना चाहते हो तो तुम जरूर देखोगे जरूर - और इसी प्रेरणा से हम आगे बढ़ने लगे अब हम थोडा आगे बढे एक बड़ी सी चट्टान को पार ही किया सामने एक शानदार विस्मृत करने वाला सूर्योदय का दृश्य था - ओह - बेहद अद्भुत - कोई शब्द नहीं , इस आनंद की कोई भाषा नहीं सारी थकान झट से गायब - और हम थोड़ी देर के लिए आँख भी नहीं झपका पाए - शीर्ष पर खड़े हमको विजय का सा अहसास होने लगा, 12500 फीट की उंचाई पर हम एक स्वप्नलोक में खो से गए -


केदारकांठा के चाँद के किस्से कहानियों का सफ़र जारी है - पूर्णिमा की पूनम और उसके रश्मि रथ की आभा हमारे कैम्प साइड पर पड़ती उससे पहले हमको वापस बेस कैम्प पहुंचना था - चाँद के केदारकांठा से दर्शन या दीदार - चांदनी के आगोश में समाहित हो रहे थे.  हम तेज कदमों से पूरब से उगते और फिर धीमे - धीमें - बुग्याल के सीने पर फ़ैली बरफ में चाँद की रोशनी को महसूस करने लगे थे - केदारकांठा के इस ट्रेक में , कैम्प के पास पश्चिम की और पीठ किये हम दोस्त एकदूसरे के चेहरे पर देखते - लेकिन उगते चाँद को देखकर कुछ बोल ही नहीं पा रहे थे ! आस पास की तिरछे बिछी - घास और और हिमालय की अन्य झाड़ियाँ- चाँद की रोशनी में और अभी हाल की पहली बर्फ की चादर के ऊपर से बिखरती चाँद की चांदनी से अजीब सा सम्मोहन पैदा कर रहे थे - अचानक लगा हम किसी ओर लोक में हैं, केदारकांठा ट्रेक के इस मोहपाश का कोई अंत नहीं था - चाँद धीरे - धीरे पश्चिम में उतरने जा रहा था , कैम्प के मेस से खाने की आवाज आने लगी थी लेकिन केदारकांठा के शीर्ष से उतर कर नीचे आते समय महसूस हो रही भारी थकान केदारकांठा के नीचे के इस बेस कैम्प पर छाये - चंद्रोदय के साथ पूरी गायब हो गयी ! अब हम चाँद को पश्चिम में डूबते हुए - यानी चंद्रास्त करते हुए देखना चाहते थे - कैम्प के मेस टेंट के भीतर सोलर लालटेन  और चूल्हे की आग के उजाले में थोड़ी देर के लिए चाँद की रोशनी धूमिल हो गयी .

 आसमान पूरा का पूरा गेलेक्सियों से भर गया है - तारे टिमटिमाते हुए और टूटते हुए दिख रहे हैं पेड़ मानों खड़े खड़े दूर सो गए हैं झींगुरों की आवाज भी दूर से आती रुपिन सुपिन की जलधाराओं के सिर्फ महसूस किये जाने के बीच - हमारे दिलो दिमाग से उतर गयी है, डूबते चाँद को केदारकांठा क्षेत्र से देखना एक अजीब सा तिलिस्म है !


केदारकांठा  के शीर्ष पर थोड़ी देर रुकने के साथ ही हमने केदार कांठा तिरंगा लहरा दिया और केदारकांठा के ट्रेक को पूरा करने का सेलिब्रेशन भी कर लिया ! लेकिन अब वापस तो जाना ही था काफी देर रुकने के बाद जब धूप तेज होने लगी - चाँद भी पश्चिम में छुप गया सूरज की रोशनी बर्फ पर चमक पैदा करने लगी हम केदारकांठा के समिट पॉइंट से भारी मन  से नीचे उतरने लगे.


केदारकांठा से नीचे उतरते हुए अनाम बेस कैम्प के बाद हम दूसरे तरफ से जुदा का ताल नाम के स्थान पर पहुंचे हैं शायद यहाँ बरसात में बुग्याल के नजदीक ताल बन जाता होगा - जूडा का ताल के बाद हमने थके हारे सिदरी कैम्प में रात्री विश्राम किया थकान बहुत थी - बस केदारकांठा की शानदार याद के साथ नींद के आगोश में जाने कब सो गए ! अगली सुबह सभी साथियों को इस ट्रेक को सफलता पूर्वक सम्पान करने के लिए प्रशस्ति पत्र भी दिए गए - ये एक सराहनीय पहल है ! सिदरी से सांकरी पहुंचे अब वापस बाजार सा आ गया है ये उत्तरकाशी का सीमान्त क्षेत्र है ,वहाँ से अब जीप टैक्सी से देर शाम तक हम देहरादून पहुँच गए हैं -हाँ मैंने सांकरी से स्थानीय भेड पालकों की ऊँन से बना कन्छुप्पा निशानी के तौर पर ले लिया था . अब हम शहर के कोलाहल के बीच वापस है  देहरादून घाटी में केदारकांठा का ट्रेक पूरा करके !   

                   

    इस ट्रैक के लिए क्या  उपकरण जरूरी है- केदारकांठा के ट्रैक के लिए अच्छी किस्म के विंड और वाटरप्रूफ टैंट माइनस 10 डिग्री तापमान झेलने के लिए अच्छे स्लीपिंग बैग, मैट्रेस, अच्छे क्वालिटी का वाटरप्रूफ बैकपैक, पौंचू, टोपी, सनग्लास, ग्लव्स, ट्रैकिंग शूज़, थर्मलवियर, टार्च, टायलैट्रिज़ और आवश्यक दवायें रखना ना भूलें।


खाने -पीने की व्यवस्था- इस ट्रैक के शुरू हो जाने के बाद - साकरी के बाजार से आगे अधिक दुकान या ढाबे नहीं है इसलिए खाने का सामान और खाना पकाने के लिए छोटे गैस सिलेण्डर (ब्यूटेन सिलेण्डर) साथ में ले जाएं। अलग से ड्राई फ्रूट आदि रखना ना भूलें। शीतल हिमालयी जल मिनरल वाटर से कम नहीं है।


ध्यान रहे ट्रैकिंग के दौरान अकेले कहीं ना जाएं-  कोई ना कोई साथ में अवश्य रहे। इस ट्रैकिंग में यह विशेष ध्यान रखने की जरूरत है कि शोरगुल ना करें, चटकीले-भड़कीले कपड़े ना पहनें, वनस्पति को नुकसान ना पहुँचायें और किसी भी प्रकार प्लास्टिक पालिथीन कचरा कहीं भी इधर-उधर ना फेंके । 



 
 
 

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