Malta - - Santara - Of Uttarakhand - Malta, scientifically known as Citrus sinensis (L.) Osbeck is an important seasonal citrus fruit familiar to the hilly areas of Uttarakhand, India. The fruit is nutritive, rich in vitamins usually eaten during winters and preferred by the local people of Uttarakhand hills due to its distinct sweet-sour taste. This fruit tree is commonly found in scattered manner in kitchen gardens and homegardens, however, it could not attain a significant place in urban as well as in local markets which has reduced itspopularity as a commercial fruit crop.
एक कोशिश आप सभी कीजिये एक हम भी कर रहे हैं - ये सभी फोटो हमारे एक फल संरक्षण केंद्र - पीपलकोटी के हैं - जिसका सञ्चालन हमारी प्रशिक्षक श्रीमती भुवना देवी कर रही हैं . आजकल पूरे पहाड़ में अलग अलग स्थानों पर छोटे बड़े केन्द्रों पर ग्रामीण और युवा उद्यमी फल संरक्षण केंद्र के रूप में काम कर रहे हैं इन केन्द्रों पर लोग दूर दूर से आते हैं - संतरा, कागजी नीम्बू, हिल लेमन यानी गलगल आदि फलों को जूस या स्क्वाश बनवा कर अपने अपने गांवों को वापस चले जाते हैं लेकिन अगर - इस फल संरक्षण केन्द्रों पर कोई भी ग्रामीण - उद्यमी , युवा आदि जूस निकलने के बाद फलों के पल्प से - बीज अलग निकाल कर अपने अपने गाँव ले जाकर अगर छोटी छोटी नर्सरी बना दे तो बीजू पौधों की एक बढ़िया नर्सरी जिसमे 200 से लेकर 2000 तक बीजू पौधे हर गाँव में उगाये जा सकते हैं ! हालांकि ये पौधे ग्राफ्टेड पौधे जैसे अच्छे पौधे तो नहीं देंगे लेकिन कागजी और गल गल - हिल लेमन बड़े नीम्बू के पौधे बढ़िया हो जायेगे और माल्टा की हो सकता है गुणवत्ता थोडा कम हो जाए- या बढ़िया हो जाए !
बीजों का उपचार- नर्सरी छोटी हो या बड़ी हो- बीजों का उपचार बेहद जरूरी है , इसलिए जब आप संतरा प्रजाति के बीज एकत्र कर लें उनको धुप पर बिलकुलन सुखाएं उनको हलके पल्प में गीला ही रखिये और हो सके तो बोने से पहले इन गीले बीजों को अगर हो सके तो किसी फंफूद्नाशक जैसे -डायथेंन एम् - 45, बावस्टीन , मेन्कोजेब , कार्बेन्डाजिम की 2 चुटकी 2000 बीजों के लिए पर्याप्त है तथा 5 किलो बीज के लिए - 20 ग्राम फंफूद नाशक पर्याप्त है अगर फंफूद नाशक न हो तो गौमूत्र का प्रयोग कीजिए . अब इन बीजों को क्यारियों में बोना है .
क्यारियां/ मदर बेड कैसे बनाएं - जब हमने 2000 बीज उपचारित कर दिए अब इनको छोटी छोटी क्यारियों में बोने की तैय्यारी शुरू कर देते हैं - क्यारियों की लम्बाई - अधिकतम 4 फीट और चौड़ाई कम से कम - 2 फीट - क्यारी बनाने से पहले एक क्यारी में कम से कम 10-15 किलो गोबर की सड़ी काली खाद मिला लें - सारे कंकड़ पत्थर हटा दीजिये - खर पतवार बिलकुल नहीं होनी चाहिए , अब क्यारी में 3-3 इंच पर कुदाल से लाइन बना लीजिये . जो बीज आपने उपचारित किये थे उनको एक चौड़े बर्तन में फैला लीजिये और उसमे साफ़ छनी हुई मिटटी या रेत को बीजों के साथ मिला दीजिये आप देखेंगे पल्प और जूस में भीगे ये फिसलन भरे बीज - भुर भूरे हो गए हैं - अब इनको लाइन से क्यारियों में बो दीजिये. एक बार सिंचाई कर दीजिये, पहाड़ों में इस दौरान काफी ठंडा रहता है इसलिए फिर आपको सीधे फ़रवरी के अंतिम सप्ताह में ही सिंचाई करनी पड़ेगी ! मैदानी भाग की क्यारियों में हर माह में कम से कम 2 बार सिंचाई जरूरी होगी. ये बीज मार्च से ज़मने लगते हैं- अब आपको विशेष ध्यान रखना होगा क्यूंकि गर लाइन में एक ही जगह पर कई बीज एक साथ जम गए तो आपके पौधों की गुणवत्ता पर फरक पड़ेगा - ये बात - संतरा , कागजी नीम्बू, गल गल - यानी हिल लेमन और नारंगी संतरा - चकोतरा सभी पर समान रूप से लागू होती है . अब आपको पौध नर्सरी बनानी है -
कैसे बनाये संतरा प्रजाति की नर्सरी या पौधशाला - अब उधर देखिये आपकी नर्सरी की बीज्वाड- तैय्यार हो गयी है - इधर आपको - नर्सरी की 2000 थैलियां या नर्सरी बैग, जो कम से कम - 6 इंच X 6 इंच की हों इन थैलियों के लिए पहले मिटटी का मिश्रंण बना लीजिये - मिश्रण कैसे बनाएं - जैसे 60 % छानी हुई मिटटी- कम से कम 10 कट्टे, 20% रेत- 3 कट्टे और 20% गोबर की सड़ी हुई खाद 3 कट्टे कुल 16 कट्टे का मिश्रण बना लीजिये- और फिर 2000 नर्सरी बैग को पूरा का पूरा भर दीजिये- ध्यान रखिये इन थैलियों में कम से कम 6 छेद होने चाहिए- ताकि अतिरिक्त पानी बाहर निकल जाए ! एक बार सारी की सारी थैलियों को - 10 -10 की लाइन में ढंग से क्यारी में लगा लीजिये और पानी के फव्वारे से सिंचाई कर लीजिये फिर अगले दिन शाम को - बीज्वाड से या मदर बेड से उँगलियों या लकड़ी की सहायता से सावधानी से छोटी - छोटी पौध को उखाड़कर पाली बैग में एक एक कर उंगली या लकड़ी से बीच में गहरा कर उसमें एक एक पौध प्रत्यारोपित कर दीजिये - ये पौध को आपने कम से कम हर हफ्ते एक बार सिंचाई करनी होगी - एक माह बाद एक बार - फंफूद नाशक और कीटनाशक का छिडकाव कर दीजिये, थैलियों में घास -खर पतवार न जमे इसलिए समय समय पर निराई - गुड़ाई की आवश्यकता होगी ! इस प्रकार अगले जुलाई तक आपके पास कम से कम 8 से 12 इंच की पौध तैयार हो जायेगी - वैसे तो इन पौधों को एक साल तक नर्सरी में रखा जाना चाहिए लेकिन अगर आप जुलाई में ही पौधे बाँट दें तो लग जायेंगे !
कैसे करें पौधों का रोपण - बरसात के समय पौधारोपण का सही समय है - इसलिए जून में ही 2 फीट चौड़ा x 2 फीट गहरा x 2 फीट लम्बा का गड्ढा बना लें उस गड्ढे में 20 किलो गोबर की खाद गड्ढे से निकली मिटटी के साथ मिला लें , गड्ढे को भर लीजिये और मानसून की पहली बारिश के बाद पौधे रोपित कर दीजिये इस प्रकार रोप गए पौधों में से कागजी नीम्बू तीसरे साल के अंत तक और माल्टा, हिल लेमन , चकोतरा और नारंगी 4 साल बाद फल देने लगेंगे ! हर साल पौधे के नीचे थावले जरूर बनाएं कम से कम 50 किलो गोबर की सड़ी खाद डालिए , पेड़ की कटाई छंटाई समय समय पर करते रहिये , पेड़ के मोटे तनों पर स्टेम पेस्ट या बोडो पेस्ट की पुताई कीजिये और इस तरह से एक फल संरक्षण केंद्र से लाये गए बीजों से आप पहाड़ में एक नए प्रयास को गति दे सकते हैं, साथ ही उत्तराखंड में स्वरोजगार और उध्यानिकी के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित कर सकते हैं !
( जे पी मैठाणी )
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